गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी

दोहराता हूँ सुनों रक्त से लिखी हुई कुर्बानी |

जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी ||


रावल रत्न सिंह को छल से कैद किया खिलजी ने

काल गई मित्रों से मिलकर दाग किया खिलजी ने

खिलजी का चित्तौड़ दुर्ग में एक संदेशा आया

जिसको सुनकर शक्ति शौर्य पर फिर अँधियारा छाया

दस दिन के भीतर न पद्मिनी का डोला यदि आया

यदि ना रूप की रानी को तुमने दिल्ली पहुँचाया

तो फिर राणा रत्न सिंह का शीश कटा पाओगे

शाही शर्त ना मानी तो पीछे पछताओगे


दारुन संवाद लहर सा दौड़ गया रण भर में

यह बिजली की तरक छितर से फैल गया अम्बर में

महारानी हिल गयीं शक्ति का सिंघासन डोला था

था सतीत्व मजबूर ज़ुल्म विजयी स्वर में बोला था


रुष्ट हुए बैठे थे सेनापति गोरा रणधीर

जिनसे रण में भय कहती थी खिलजी की शमशीर

अन्य अनेको मेवाड़ी योद्धा रण छोड़ गए थे

रत्न सिंह के संध नीद से नाता तोड़ गए थे

पर रानी ने प्रथम वीर गोरा को खोज निकाला

वन वन भटक रहा था मन में तिरस्कार की ज्वाला


गोरा से पद्मिनी ने खिलजी का पैगाम सुनाया

मगर वीरता का अपमानित ज्वार नहीं मिट पाया

बोला मैं तो बहुत तुक्ष हूँ राजनीती क्या जानू

निर्वासित हूँ राज मुकुट की हठ कैसे पहचानू

बोली पद्मिनी समय नहीं है वीर क्रोध करने का

अगर धरा की आन मिट गयी घाव नहीं भरने का

दिल्ली गई पद्मिनी तो पीछे पछताओगे

जीतेजी राजपूती कुल को दाग लगा जाओगे

राणा ने को कहा किया वो माफ़ करो सेनानी

यह कह कर गोरा के क़दमों पर झुकी पद्मिनी रानी


यह क्या करती हो गोरा पीछे हट बोला

और राजपूती गरिमा का फिर धधक उठा था शोला

महारानी हो तुम सिसोदिया कुल की जगदम्बा हो

प्राण प्रतिष्ठा एक लिंग की ज्योति अग्निगंधा हो

जब तक गोरा के कंधे पर दुर्जय शीश रहेगा

महाकाल से भी राणा का मस्तक नहीँ कटेगा

तुम निश्चिन्त रहो महलो में देखो समर भवानी

और खिलजी देखेगा केसरिया तलवारो का पानी

राणा के सकुशल आने तक गोरा नहीँ मरेगा

एक पहर तक सर कटने पर धड़ युद्ध करेगा

एक लिंग की शपथ महाराणा वापस आएंगे

महा प्रलय के घोर प्रबन्जन भी न रोक पाएंगे


शब्द शब्द मेवाड़ी सेनापति का था तूफानी

शंकर के डमरू में जैसे जाएगी वीर भवानी

दोहराता हूँ सुनों रक्त से लिखी हुई कुर्बानी |

जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी ||


खिलजी मचला था पानी में आग लगा देने को

पर पानी प्यास बैठा था ज्वाला पी लेने को

गोरा का आदेश हुआ सज गए सात सौ डोले

और बाँकुरे बादल से गोरा सेनापति बोले

खबर भेज दो खिलजी पर पद्मिनी स्वयं आती हैं

अन्य सात सौ सखियाँ भी वो साथ लिए आती हैं


स्वयं पद्मिनी ने बादल का कुमकुम तिलक किया था

दिल पर पत्थर रख कर भीगी आँखों से विदा किया था

और सात सौ सैनिक जो यम से भी भीड़ सकते थे

हर सैनिक सेनापति था लाखों से लड़ सकते थे

एक-एक कर बैठ गए सज गयी डोलियां पल में

मर मिटने की होड़ लग गयी थी मेवाड़ी दल में

हर डोली में एक वीर था चार उठाने वाले

पांचो ही शंकर के गण की तरह समर मतवाले

बज कूच शंख सैनिकों ने जयकार लगाई

हर हर महादेव की ध्वनि से दसों दिशा लहराई


गोरा बादल के अंतस में जगी जोत की रेखा

मातृभूमि चित्तौड़ दुर्ग को फिर जी भरकर देखा

कर प्रणाम चढ़े घोड़ों पर सुभग अभिमानी

देश भक्ति की निकल पड़ें लिखने वो अमर कहानी

दोहराता हूँ सुनों रक्त से लिखी हुई कुर्बानी |

जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी ||


जा पहुंचे डोलियां एक दिन खिलजी के सरहद में

उधर दूत भी जा पहुंच खिलजी के रंग महल में

बोला शहंशाह पद्मिनी मल्लिका बनने आयी है

रानी अपने साथ हुस्न की कलियाँ भी लायी है

एक मगर फ़रियाद उसकी फ़कत पूरी करवा दो

राणा रत्न सिंह से एक बार मिलवा दो

खिलजी उछल पड़ा कह फ़ौरन यह हुक्म दिया था

बड़े शौख से मिलने का शाही फरमान दिया था


वह शाही फरमान दूत ने गोरा तक पहुँचाया

गोरा झूम उठे छन बादल को पास बुलाया

बोले बेटा वक़्त आ गया अब काट मरने का

मातृभूमि मेवाड़ धरा का दूध सफल करने का

यह लोहार पद्मिनी भेष में बंदी गृह जायेगा

केवल दस डोलियां लिए गोरा पीछे ढायेगा

यह बंधन काटेगा हम राणा को मुख्त करेंगे

घोड़सवार उधर आगे की खी तैयार रहेंगे

जैसे ही राणा आएं वो सब आंधी बन जाएँ

और उन्हें चित्तौड़ दुर्ग पर वो सकुशल पहुंचाएं

अगर भेद खुल गया वीर तो पल की देर न करना

और शाही सेना पहुंचे तो बढ़ कर रण करना

राणा जाएं जिधर शत्रु को उधर न बढ़ने देना

और एक यवन को भी उस पथ पावँ ना धरने देना

मेरे लाल लाडले बादल आन न जाने पाएं

तिल-तिल कट मरना मेवाड़ी मान न जाने पाएं


ऐसा ही होगा काका राजपूती अमर रहेगी

बादल की मिट्टी में भी गौरव की गंध रहेगी


तो फिर आ बेटा बादल सीने से तुझे लगा लूँ

हो ना सके शायद अब मिलन अंतिम लाड लड़ा लूँ

यह कह बाँहों में भर कर बादल को गले लगाया

धरती काँप गयी अम्बर का अंतस मन भर आया


सावधान कह पुन्ह पथ पर बढ़ें गोरा सैनानी

पूँछ लिया झट से बढ़ कर के बूढी आँखों का पानी

दोहराता हूँ सुनों रक्त से लिखी हुई कुर्बानी |

जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी ||

 

गोरा की चातुरी चली राणा के बंधन काटे

छांट-छांट कर शाही पहरेदारों के सर काटे

लिपट गए गोरा से राणा गलती पर पछताए

सेनापति की नमक खलाली देख नयन भर आये


पर खिलजी का सेनापति पहले से ही शंकित था

वह मेवाड़ी चट्टानी वीरों से आतंकित था

जब उसने लिया समझ पद्मिनी नहीँ आयी है

मेवाड़ी सेना खिलजी की मौत साथ लायी है

पहले से तैयार सैन्य दल को उसने ललकारा

निकल पड़ा तिधि दल का बजने लगा नगाड़ा


दृष्टि फिरि गोरा की राणा को समझाया

रण मतवाले को रोका जबरन चित्तौड़ पठाया

राणा चलें तभी शाही सेना लहरा कर आयी

खिलजी की लाखो नंगी तलवारें पड़ी दिखाई

खिलजी ललकारा दुश्मन को भाग न जाने देना

रत्न सिंह का शीश काट कर ही वीरों दम लेना

टूट पड़ों मेवाड़ी शेरों बादल सिंह ललकारा

हर हर महादेव का गरजा नभ भेदी जयकारा

निकल डोलियों से मेवाड़ी बिजली लगी चमकने

काली का खप्पर भरने तलवारें लगी खटकने


राणा के पथ पर शाही सेना तनिक बढ़ा था

पर उस पर तो गोरा हिमगिरि सा अड़ा खड़ा था

कहा ज़फर से एक कदम भी आगे बढ़ न सकोगें

यदि आदेश न माना तो कुत्ते की मौत मरोगे

रत्न सिंह तो दूर ना उनकी छाया तुम्हें मिलेगी

दिल्ली की भीषण सेना की होली अभी जलेगी


यह कह के महाकाल बन गोरा रण में हुंकारा

लगा काटने शीश बही समर में रक्त की धारा

खिलजी की असंख्य सेना से गोरा घिरे हुए थे

लेकिन मानो वे रण में मृत्युंजय बने हुए थे

पुण्य प्रकाशित होता है जैसे अग्रित पापों से

फूल खिला रहता असंख्य काटों के संतापों से

वो मेवाड़ी शेर अकेला लाखों से लड़ता था

बढ़ा जिस तरफ वीर उधर ही विजय मंत्र बढ़ता था

इस भीषण रण से दहली थी दिल्ली की दीवारें

गोरा से टकरा कर टूटी खिलजी की तलवारें


मगर क़यामत देख अंत में छल से काम लिया था

गोरा की जंघा पर अरि ने छिप कर वार किया था

वहीँ गिरे वीर वर गोरा जफ़र सामने आया

शीश उतार दिया धोखा देकर मन में हर्षाया

मगर वाह रे मेवाड़ी गोरा का धड़ भी दौड़ा

किया जफ़र पर वार की जैसे सर पर गिरा हतोड़ा

एक बार में ही शाही सेना पति चीर दिया था

जफ़र मोहम्मद को केवल धड़ ने निर्जीव किया था


ज्यों ही जफ़र कटा शाही सेना का साहस लरज़ा

काका का धड़ लख बादल सिंह महारुद्र सा गरजा

अरे कायरों नीच बाँगड़ों छल में रण करते हों

किस बुते पर जवान मर्द बनने का दम भरते हों

यह कह कर बादल उस छन बिजली बन करके टुटा था

मानो धरती पर अम्बर से अग्नि शिरा छुटा था

ज्वाला मुखी फहत हो जैसे दरिया हो तूफानी

सदियों दोहराएंगी बादल की रण रंग कहानी


अरि का भाला लगा पेट में आंते निकल पड़ी थीं

ज़ख़्मी बादल पर लाखों तलवारें खिंची खड़ी थी

कसकर बाँध लिया आँतों को केसरिया पगड़ी से

रण चक डिगा न वो प्रलयंकर सम्मुख मृत्यु खड़ी से

अब बादल तूफ़ान बन गया शक्ति बनी फौलादी

मानो खप्पर लेकर रण में लड़ती हो आज़ादी


उधर वीरवर गोरा का धड़ आर्दाल काट रहा था

और इधर बादल लाशों से भूदल पात रहा था

आगे पीछे दाएं बाएं जम कर लड़ी लड़ाई

उस दिन समर भूमि में लाखों बादल पड़े दिखाई

मगर हुआ परिणाम वहीँ की जो होना था

उनको तो कण-कण अरियों के सोन तामे धोना था

अपने सीमा में बादल सकुशल पहुँच गए थे

गोरा- बादल तिल-तिल कर रण में खेत गए थे


एक-एक कर मिटें सभी मेवाड़ी वीर सिपाही

रत्न सिंह पर लेकिन रंचक आँच न आने पाई

गोरा-बादल के शव पर भारत माता रोई थी

उसने अपनी दो प्यारी ज्वलंत मणिया खोईं थी

धन्य धरा मेवाड़ धन्य गोरा बादल अभिमानी

जिनके बल से रहा पद्मिनी का सतीत्व अभिमानी

दोहराता हूँ सुनों रक्त से लिखी हुई कुर्बानी |

जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी ||

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